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स्पर्शनेन्द्रिय निरोध व्रत
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जीवाजीवसमुत्थे कक्कडमउगादिअट्ठभेदजुदे
फासे सुहे य असुहे फासणिरोहो असंमोहो ॥21॥
अन्वयार्थ :
जीव
(स्त्री आदि)
के निमित्त से और अजीव से उत्पन्न हुए एवं कठोर कोमल आदि आठ भेदों से युक्त सुख और दु:ख रूप स्पर्श में मोह रागादि नहीं करना स्पर्शनेन्द्रिय निरोध व्रत है।