+ स्तव -
उसहादिजिणवराणं णामणिरुत्तिं गुणाणुकित्तिं च
काऊण अच्चिदूण य तिसुद्धिपणमो थवो णेओ ॥24॥
अन्वयार्थ : ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों के नाम की निरुक्ति के अनुसार अर्थ करना, उनके असाधारण गुणों को प्रगट करना, उनके चरणों को पूजकर मन-वचन-काय की शुद्धता से स्तुति करना उसे चतुर्विंशतिस्तव कहते हैं ।