+ वन्दना -
अरहंतसिद्ध पडिमातवसुदगुणगुरुगुरूण रादीणं
किदियम्मेणिदरेण य तियरणसंकोचणं पणमो ॥25॥
अन्वयार्थ : कृतिकर्म पूर्वक वन्दना करना अर्थात् सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, आचार्यभक्ति पूर्व कायोत्सर्ग आदि के द्वारा मन-वचन काय की शुद्धिपूर्वक प्रणाम करना वन्दना है। अर्हंत-सिद्धों की प्रतिमा, तपोगुरु, श्रुतगुरु, गुणगुरु, दीक्षागुरु और दीक्षा में अपने से बड़े गुरु-इन सबका कृतिकर्म पूर्वक अथवा बिना कृतिकर्म के नमस्कार मात्र करके मन वचन काय की विशुद्धि द्वारा विधिपूर्वक जो नमस्कार किया जाता है वह वन्दना नाम का मूलगुण कहलाता है।