
दव्वे खेत्ते काले भावे य कयावराहसोहणयं
णिंदणगरहणजुत्तो मणवचकाएण पडिक्कमणं ॥26॥
अन्वयार्थ : निन्दा और गर्हा से युक्त होकर साधु मन वचन काय की क्रिया के द्वारा द्रव्य क्षेत्र काल और भाव के विषय में अथवा इन द्रव्यादिकों के द्वारा किये गये व्रत विषयक अपराधों का जो शोधन करते हैं उसका नाम प्रतिक्रमण है।