
वत्थाजिणवक्केण य अहवा पत्ताइणा असंवरणं
णिब्भूसणं णिग्गंथं अच्चेलक्कं जगदि पूज्जं ॥30॥
अन्वयार्थ : वस्त्र, चर्म और वल्कलों से अथवा पत्ते आदि से शरीर को नहीं ढकना, भूषण अलंकार से और परिग्रह से रहित निर्ग्रन्थ वेष जगत में पूज्य अचेलकत्व नाम का मूलगुण है।