+ वृहत् प्रत्याख्यान अधिकार का मंगलाचरण -
सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहदो णमो
सद्दहे जिणपण्णत्तं पच्चक्खामि य पावयं ॥37॥
णमोत्थु धुदपावाणं सिद्धाणं च महेसिणं
संथरं पडिवज्जामि जहा केवलिदेसियं ॥38॥
अन्वयार्थ : आठ गुण सहित सिद्धों को, नव केवल लब्धि युक्त अरिहंतों को, केवलज्ञान की ऋद्धि जिनको प्राप्त हुई है ऐसे मर्हिषयों को नमस्कार किया है । आत्मसंस्कार काल, सल्लेखना काल और उत्तमार्थ काल इन तीन कालों में यदि मरण उपस्थित हो तो मुनि संस्तर का आश्रय लेते हैं ।
दीक्षा काल, शिक्षा काल, गणपोषण काल, आत्मसंस्कार काल, सल्लेखना काल और उत्तमार्थ काल के भेद से काल के छह भेद हैं।