+ दुश्चरित का त्याग -
जं किंचि मे दुच्चरियं सव्वं तिविहेण वोसरे
सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं णिरायारं ॥39॥
अन्वयार्थ : जो किंचित् भी मेरा दुश्चरित है उस सभी का मैं मन-वचन-काय से त्याग करता हूँ और सभी तीन प्रकार की सामायिक को निर्विकल्प करता हूँ । इस प्रकार प्रतिज्ञा करते हैं ।