+ उपाधि का त्याग -
बज्झब्भंतरमुवहिं सरीराइं च सभोयणं
मणसा वचि काएण सव्वं तिविहेण वोसरे ॥40॥
सव्वं पाणारंभं पच्चक्खामि अलीयवयणं च
सव्वमदत्तादाणं मेहूण परिग्गहं चेव ॥41॥
अन्वयार्थ : बाह्य-अभ्यन्तर परिग्रह का, शरीर आदि का और भोजन आदि का मन वचन काय से और कृत कारित अनुमोदना से त्याग करते हैं । सम्पूर्ण हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और मूर्च्छा स्वरूप परिग्रह का भी त्याग करते हैं ।