+ अब्रह्मचर्य के भेद -
सम्मं मे सव्वभूदेसु वेरं मज्झं ण केणवि
आसा वोसरित्ताणं समाहिं वडिवज्जए ॥42॥
अन्वयार्थ : मेरा सभी जीवों में समताभाव है, मेरा किसी के साथ वैर नहीं है । सम्पूर्ण आशा को छोड़कर इस समाधि को स्वीकार करता हूँ ।