+ समस्त संयोग सम्बन्ध का त्याग -
संजोयमूलं जीवेण पत्तं दुक्खपरंपरं
तम्हा संजोय संबंधं सव्वं तिविहेण वोसरे ॥49॥
अन्वयार्थ : इस जीव ने संयोग के निमित्त से दु:खों के समूह को प्राप्त किया है इसलिए मैं समस्त संयोग सम्बन्ध को मन वचन काय पूर्वक छोड़ता हूँ ।