
मूलगुण उत्तरगुणे जो मे णाराहिओ पमाएण
तमहं सव्वं णिंदे पडिक्कमे आगमिस्साणं ॥50॥
अस्संजममण्णाणं मिच्छत्तं सव्वमेव य ममत्तिं
जीवेसु अजीवेसु य तं णिंदे तं च गरिहामि ॥51॥
अन्वयार्थ : मैंने मूलगुण और उत्तरगुणों में प्रमाद से जिस किसी की आराधना नहीं की है उस सम्पूर्ण की मैं निन्दा करता हूँ और भूत वर्तमान ही नहीं भविष्य में आने वाले का भी मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । असंयम, अज्ञान और मिथ्यात्व तथा जीव और अजीव विषयक सम्पूर्ण ममत्व-उन सबकी मैं निन्दा करता हूँ और उन सबकी मैं गर्हा करता हूँ ।