+ आराधना के अपात्र -
जे पुण पणट्ठमदिया पचलियसण्णा य वक्कभावा य
असमाहिणा मरंते ण हु ते आराहया भणिया ॥60॥
अन्वयार्थ : जो पुन: नष्ट बुद्धि वाले हैं, जिनकी आहार आदि संज्ञाएँ उत्कट हैं और जो कुटिल परिणामी हैं वे असमाधि से मरण करते हैं । निश्चित रूप से वे आराधक नहीं कहे गये हैं ।