+ मरण काल में परिणाम बिगड़ने से गति -
मरणे विराहिए देवदुग्गई दुल्लहा य किर बोही
संसारो य अणंतो होइ पुणो आगमे काले ॥61॥
अन्वयार्थ : मरण की विराधना हो जाने पर देवदुर्गति होती है । भवन, व्यंतर ज्योतिष्कादि देवों में जन्म लेते हैं तथा निश्चितरूप से बोधि की प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है और फिर आगामी काल में उस जीव का संसार अनन्त हो जाता है ।