+ बोधि की प्राप्ति में दुर्लभता और सुलभता -
मिच्छादंसणरत्ता सणिदाणा किण्हलेसमोगाढा
इह जे मरंति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥69॥
सम्मद्दंसणरत्ता अणियाणा सुक्कलेसमोगाढा
इह जे मरंति जीवा तेसिं सुलहा हवे बोही ॥70॥
अन्वयार्थ : जो जीव मिथ्यादर्शन से अनुरक्त, निदान सहित और कृष्ण लेश्या से मरण करते हैं उनके लिए बोधि की प्राप्ति होना दुर्लभ है । जो सम्यग्दर्शन में तत्पर हैं, निदान भावना से रहित हैं और शुक्ल लेश्या से परिणत हैं ऐसे जो जीव मरण करते हैं उनके लिए बोधि सुलभ है ।