+ परीत संसारी -
जिणवयणे अणुरत्ता गुरुवयणं जे करंति भावेण
असबल असंकिलिट्ठा ते होंति परित्तसंसारा ॥72॥
अन्वयार्थ : जो जिनेन्द्रदेव के वचनों में अनुरागी है, भाव से गुरु आज्ञा का पालन करते हैं, अतिचार रहित हैं तथा संक्लेशभाव रहित हैं वे संसार का अंत करने वाले होते हैं ।