
उड्ढमधो तिरियाह्मि दु कदाणि बालमरणाणि बहुगाणि
दंसणणाणसहगदो पंडियमरणं अणुमरिस्से ॥75॥
उव्वेयमरणं जादीमरणं णिरएसु वेदणाओ य
एदाणि संभरंतो पंडियमरणं अणुमरिस्से ॥76॥
अन्वयार्थ : ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यग् लोक में मैंने बहुत बार बालमरण किये हैं अब मैं दर्शन और ज्ञान से सहित होता हुआ पण्डित मरण से मरूँगा । उद्वेग पूर्वक मरण, जन्मते ही मरण और जो नरकों की वेदनाएँ हैं इन सबका स्मरण करते हुए अब मैं पण्डित मरण से प्राण त्याग करूँगा ।