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पण्डितमरण शुभ क्यों?
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एक्कं पंडिदमरणं छिंददि जादीसयाणि बहुगाणि
तं मरणं मरिदव्वं जेण मदं सुम्मदं होदि ॥77॥
अन्वयार्थ :
एक पण्डितमरण सौ-सौ जन्मों का नाश कर देता है अत: ऐसे ही मरण से मरना चाहिए कि जिससे मरण सुमरण हो जावे ।