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क्षुधा तृषा को ऐसे जीतें
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जइ उप्पज्जइ दु:खं तो दट्ठव्वो सभावदो णिरए
कदमं मए ण पत्तं संसारे संसरंतेण ॥78॥
अन्वयार्थ :
यदि असातावेदनीय कर्म के उदय से दु:ख उत्पन्न होता है तो नरक के स्वरूप का अवलोकन मन से करना चाहिए। जिससे भूख आदि वेदनाओं से धैर्य च्युत नहीं होता है ।