
संसारचक्कवालम्मि मए सव्वेवि पुग्गला बहुसो
आहारिदा य परिणामिदा य ण य मे गदा तित्ती ॥79॥
अन्वयार्थ : चतुर्गति के जन्म मरण रूप भँवर में मैंने सभी पुद्गल वर्गणाओं को अनन्त बार ग्रहण किया है, खलभाग रसभाग रूप से परिणमाया भी है, अर्थात् उन्हें जीर्ण भी किया है किन्तु आज तक उनसे मुझ तृप्ति नहीं हुई, प्रत्युत आकांक्षाऐं बढ़ती ही गयी है ।