+ चन्द्रकवेध्य यन्त्र का उदाहरण -
तह्मा चंदयवेज्झस्स कारणेण उज्जदेण पुरिसेण
जीवो अविरहिदगुणो कादव्वो मोक्खमग्गमि ॥85॥
कणयलदा णागलदा विज्जुलदा तहेव कुंदलदा
एदाविय तेण हदा मिथिलाणयरिए महिंदयत्तेण ॥86॥
सायरगो बल्लहगो कुलदत्तो वड्डमाणगो चेव
दिवसेणिक्केण हदा मिहिलाए महिंददत्तेण ॥87॥
अन्वयार्थ : चंद्रकवेध यंत्र को वेधने के लिए खूब अभ्यास करना पड़ता है । ऐसे चंद्रक वेध्य के लिए उद्युक्त हुए वीर पुरुष यंत्र की तरफ एकाग्र चित्त होकर उसको विद्ध करने में सफल होता है, वैसे ही सल्लेखना मरण के लिए उद्युक्त हुआ क्षपक ज्ञानदर्शन चारित्रादि में स्थिर रहेगा तभी समाधिमरण कार्य में सफल होगा ।
उदा. मिथिला नगरी में महेन्द्र दत्त नामक पुरुष ने सागरक, वल्लभक, कुलदत्त और वर्धमानक ऐसे चार पुरुषों को चंद्रकवेध्य के समय मारा था । तथा उसी ने ही उसी नगरी में कनकलता, नागलता, विद्युलता और कुंदलता इन स्त्रियों को मारा था उसी प्रकार मुनि भी समाधिमरण के समय यत्न करके क्रोधादि कषायों का नाश करें ।