+ निर्यापकाचार्य की आवश्यकता -
जह णिज्जावयरहिया णावाओ वररदण सुपुण्णाओ
पट्ठणमासण्णाओ खु पमादमला णिबुड्डंति ॥88॥
अन्वयार्थ : जैसे उत्तम रत्नों से भी हुई नौकाएँ नगर के समीप किनारे पर आकार भी, कर्णधार के अभाव में प्रमाद के कारण नौकाएँ डूब जाती हैं वैसे क्षपक रूपी नौकाएँ भी रत्नत्रय रूपी रत्नों से परिपूर्ण हैं । संन्यास रूपी पत्तन-किनारे तक आ चुकी हैं फिर भी निर्यापकाचार्य के अभाव में प्रमाद से वे क्षपकरूपी नौकाएँ संसार समुद्र में डूब जाती हैं अत: सावधानी रखनी चाहिए ।