हंतूण रागदोसे छेत्तूण य अट्ठकम्मसंखलियं
जम्मणमरणरहट्टं भेत्तूण भवाहि मुच्चिहसि ॥90॥
अन्वयार्थ : हे क्षपक ! जब तुम आहारादि संज्ञा से रहित होकर राग द्वेष का त्याग करोगे तब तुम्हारे ज्ञानावरणादि आठ कर्मों की शृंखला टूट जाने से जन्म मरण रूपी अरहट भी नष्ट होगा जिससे तुम संसार भ्रमण से मुक्त होकर नित्य सुखी होगे ।