सव्वमिदं उवदेसं जिणदिट्ठं सद्दहामि तिविहेण
तसथावरखेमकरं सारं णिव्वाणमग्गस्स ॥91॥
अन्वयार्थ : जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित सम्पूर्ण इस उपदेश का मन वचन काय से श्रद्धान करता हूँ । यह निर्वाण मार्ग का सार है और त्रस तथा स्थावर जीवों का क्षेम-सुख करने वाला है ।