एक्कह्मि बिदियह्मि पदे संवेगो वीयराय मग्गम्मि
वच्चदिणरो अभिक्खं तं मरणंते ण मोत्तव्वं ॥93॥
अन्वयार्थ : 'नमोऽर्हद्भ्य:' नम: सिद्धेभ्य: इन दोनों नमस्कार पदों को मरणसमय में क्षपक को विस्मरण न हो तथा सर्वसंग परित्याग किये हुए क्षपक को वीतराग मार्ग का प्रतिपादन करने वाले जिनागम में अतिशय हर्ष रखना चाहिए । कंठगत प्राण होने पर भी 'ऊँ-ह्रीं' आदि बीजाक्षर पदों का चिंतन करते करते प्राण त्याग करना चाहिए ।