एदह्मादो एक्कं हि सिलोगं मरणदेसयालह्मि
आराहणउवजुत्तो चिंतंतो आराधओ होदि ॥94॥
अन्वयार्थ : आराधना में लगा हुआ साधु मरण के काल में इस श्रुत समुद्र से एक भी श्लोक का, पद का चिन्तवन करता हुआ आराधक हो जाता है ।