जिणवयणमोसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमिदभूदं
जरमरणवाहिवेयणखयकरणं सव्वदुक्खाणं ॥95॥
अन्वयार्थ : विषय सुख का विरेचन कराने वाले और अमृतमय ये जिनवचन ही औषध हैं । ये जरा मरण और व्याधि से होने वाली वेदना को तथा सर्व दु:खों को नष्ट करने वाले हैं ।