आराहण उवजुत्तो कालं काऊण सुविहिओ सम्मं
उक्कस्सं तिण्णि भवे गंतूण य लहइ णिव्वाणं ॥97॥
अन्वयार्थ :
आराधना में तत्पर हुआ साधु आगम में कथित सम्यक्-प्रकार से मरण करके उत्कृष्ट रूप से तीन भव को पाकर पुन: निर्वाण को प्राप्त कर लेता है ।