
धीरेण वि मरिदव्वं णिद्धीरेण वि अवस्स मरिदव्वं
जदि दोहिं वि मरिदव्वं वरं हि धीरत्तणेण मरिदव्वं ॥100॥
सीलेणवि मरिदव्वं णिस्सीलेणवि अवस्स मरिदव्वं
जइ दोहिं वि मरियव्वं वरं हु सीलत्तणेण मरियव्वं ॥101॥
अन्वयार्थ : धीर वीर को भी मरना पड़ता है और निश्चित रूप से धैर्य रहित जीव को भी मरना पड़ता है । यदि दोनों को मरना ही पड़ता है तब तो धीरता सहित होकर ही मरना अच्छा है शीलयुक्त को भी मरना पड़ता है और शील रहित को भी मरना पड़ता है यदि दोनों को ही मरना पड़ता है तब तो शील सहित होकर ही मरना श्रेष्ठ है ।