
णिम्ममो णिरहंकारो णिक्कसाओ जिदिंदिओ धीरो
अणिदाणो दिठिसंपण्णो मरंतो आराहओ होज ॥103॥
णिक्कसायस्स दंतस्स सूरस्स ववसाइणो
संसारभयभीदस्स पच्चक्खाणं सुहं हबे ॥104॥
अन्वयार्थ : जो ममत्व रहित, अहंकार रहित, कषाय रहित, जितेन्द्रिय, धीर, निदान रहित और सम्यग्दर्शन से सम्पन्न है वह मरण करता हुआ आराधक होता है। जो कषाय रहित है । इन्द्रियों का दमन करने वाला है, शूर है, पुरुषार्थी है और संसार से भयभीत है उसके सुखपूर्वक प्रत्याख्यान होता है ।