
एदं पच्चक्खाणं जो काहदि मरणदेसयालम्मि
धीरो अमूढसण्णो सो गच्छइ उत्तमं ठाणं ॥105॥
अन्वयार्थ : धैर्यवान, आहार, भय, आदि संज्ञाओं में लम्पटता रहित जो साधु मरण के समय उपर्युक्त प्रत्याख्यान को करते हैं वे उत्तम अर्थात् निर्वाण स्थान को प्राप्त कर लेते हैं ।