जा गदी अरहंताणं णिट्ठिदट्ठाणं च जा गदी
जा गदी वीदमोहाणं सा मे भवदु सस्सदा ॥107॥
अन्वयार्थ :
हे भगवान, जो गति अर्हंतों की, सिद्धों की और क्षीणकषायी जीवों की होती है वही गति मेरी हमेशा होवें और मैं कुछ भी आपसे नहीं माँगता हूँ ।