सव्वं पाणारंभं पच्चक्खामि अलीयवयणं च
सव्वमदत्तादाणं मेहूणपरिग्गहं चेव ॥109॥
अन्वयार्थ :
सम्पूर्ण प्राणिहिंसा को, असत्य वचन को, सम्पूर्ण अदत्त ग्रहण और मैथुन तथा परिग्रह को भी मैं छोड़ता हूँ ।