सम्मं मे सव्वभूदेसु वेरं मज्झं ण केणइ
आसाए वोसरित्ताणं समाधिं पडिवज्जए ॥110॥
सव्वं आहारविहिं सण्णाओ आसए कसाए य
सव्वं चेय ममत्तिं जहामि सव्वं खमावेमि ॥111॥
अन्वयार्थ : सभी प्राणियों में मेरा साम्य-भाव है । किसी के साथ भी मेरा बैर नहीं है, मैं सम्पूर्ण आकांक्षाओं को छोड़कर, शुभ-परिणाम रूप समाधि को प्राप्त करता हूँ । सर्व आहार-विधि को, आहार आदि संज्ञाओं को, आकांक्षाओं और कषायों को तथा सम्पूर्ण ममत्व को भी मैं छोड़ता हूँ तथा सभी से क्षमा कराता हूँ ।