जो कोई मज्झ उवही सब्भंतवाहिरो य हवे
आहारं च सरीरं जावज्जीवा य वोसरे ॥114॥
अन्वयार्थ : जो कुछ भी मेंरा अभ्यन्तर और बाह्य परिग्रह है, उसको तथा आहार और शरीर को मैं जीवन-भर के लिए छोड़ता हूँ ।