एगं पंडियमरणं छिंदइ जाईसयाणि बहुगाणि
तं मरणं मरिदव्वं जेण मदं सुम्मदं होदि ॥117॥
अन्वयार्थ : एक ही पण्डित-मरण बहुविध सौ-सौ जन्मों को समाप्त कर देता है । इसलिए ऐसा मरण प्राप्त करना चाहिए जिससे मरण सुमरण हो जावे ।