एगम्हि य भवगहणे समाहिमरणं लहिज्ज जदि जीवो
सत्तट्ठभवग्गहणे णिव्वाणमणुत्तरं लहदि ॥118॥
अन्वयार्थ : यदि जीव एक भव में समाधिमरण को प्राप्त कर लेता है तो वह सात या आठ भव लेकर पुन: सर्वश्रेष्ठ निर्वाण को प्राप्त कर लेता है ।