+ किस अपराध में मिथ्याकार होता है ? -
जं दुक्कडं तु मिच्छा तं णेच्छदि दुक्कडं पुणो कादुं
भावेण य पडिवंâतो तस्सभवे दुक्कडेमिच्छा ॥132॥
अन्वयार्थ : जो दुष्कृत अर्थात् पाप हुआ है, वह मिथ्या होवे पुन: उस दोष को करना नहीं चाहता है और भाव से प्रतिक्रमण कर चुका है उसके दुष्कृत के होने पर मिथ्याकार होता है ।