
कोई सव्वसमत्थो सगुरुसुदं सव्वमागमित्ताणं
विणएणुवक्कमित्ता पुच्छइ सगुरुं पयत्तेण ॥145॥
अन्वयार्थ : कोई सर्वसमर्थ साधु अपने गुरु के सम्पूर्ण श्रुत को पढ़कर, अन्य शास्त्र पढने हेतु, अन्य संघ गमनार्थ विनय से पास आकर और प्रयत्नपूर्वक अपने गुरु से पूछता है ।