+
शिष्य गुरु से क्या पूछता है ?
-
तुज्झं पादपसाएण अण्णमिच्छामि गंतुमायदणं
तिण्णि व पंच व छावा पुच्छाओ एत्थ सो कुणई ॥146॥
अन्वयार्थ :
मुनि अपने आचार्य से प्रार्थना करता है, 'हे भगवन् ! आपके चरण कमलों की प्रसन्नता से, आपकी आज्ञा से अन्य आयतन को प्राप्त करना चाहता हूँ ।