+ विहार के भेद -
गिहिदत्थे य विहारो विदिओऽगिहिदत्थसंसिदो चेव
एत्तो तदियविहारो णाणुण्णादो जिणवरेहिं ॥148॥
अन्वयार्थ : विहार के दो भेद है-गृहीतार्थ और अगृहीतार्थ । जो जीवादि पदार्थों के ज्ञाता महासाधु देशांतर में गमन करते हुए चारित्र का अनुष्ठान करते हैं उनका विहार गृहीतार्थ नाम का विहार है तथा जो अल्पज्ञानी चारित्र का पालन करते हुए विचरण करते हैं उनका विहार अगृहीतार्थ नाम का विहार है ।