
तवसुत्तसत्तएगत्तभावसंघडणधिदिसमग्गो य
पवियाआगमबलिओ एयविहारी अणुण्णादो ॥149॥
अन्वयार्थ : जो तप, सूत्र, सत्त्व, एकत्वभाव तथा उत्तम संहनन और धैर्य गुणों से परिपूर्ण हैं, इतना ही नहीं, दीक्षा से, आगम से भी बलवान हैं अर्थात् तपश्चर्या से वृद्ध हैं , आचार सम्बन्धी सिद्धान्त में भी अक्षुण्ण हैं । अर्थात् आचार ग्रंथों के अनुकूल चर्या में निपुण हैं ऐसे गुण-विशिष्ट मुनि को ही जिनेन्द्र देव ने एकलविहारी होने की अनुमति दी है ।