+ स्वछंद प्रवृत्ति करते हैं उनके लिए क्या आज्ञा है ? -
स्वछंदगदागदीसयणणिसयणादाणभिक्खवोसरणे
स्वछंदजंपरोचि य मा मे सत्तूवि एगागी ॥150॥
अन्वयार्थ : आहार, विहार, नीहार, उठना, बैठना, सोना और किसी वस्तु को उठाना या धरना इन सभी कार्यों में जो आगम के विरुद्ध मनमानी प्रवृत्ति करता है ऐसा कोई भी, मेरा शत्रु ही क्यों न हो, अकेला न रहें, मुनि की जो बात ही क्या है। उन्हें तो हमेशा गुरुओं के संघ में ही रहना चाहिए ।