
गुरु परिवादो सुदवुच्छेदो तित्थस्स मइलक्षा जडदा
भिभंलकुसीलपासत्थदा य उस्सारकप्पम्हि ॥151॥
अन्वयार्थ : स्वेच्छाचार की प्रवृत्ति में १. गुरु की निन्दा, २. श्रुत का विनाश, ३. तीर्थ की मलिनता, ४. मूढ़ता, ५. आकुलता, ६. कुशीलता, ७. पाश्र्वस्थता ये दोष आते हैं ।