+ एकल विहार में अन्य पापस्थान -
आणाअणवत्थाविय मिच्छत्ताराहणादणासो य
संजमविराहणाविय एदे दुणिकाइया ठाणा ॥154॥
अन्वयार्थ : अकेले विहार करने से निम्न पाँच पापस्थान और दोष आते हैं । १. सर्वज्ञ जिनेश्वर के शासन का उल्लंघन होता है । २. अनवस्था दोष-स्वच्छंद मुनि का आचरण देखकर अन्य मुनि भी उसके समान आचरण करेंगे । ३. मिथ्यात्व का सेवन, ४. आत्मनाश, ५. संयम विराधना।