
सिस्साणुग्गहकुसलो धम्मुवदेसो य संघवट्टवओ
मज्जादुवदेसोवि य गणपरिरक्खो मुणेयव्वो ॥156॥
अन्वयार्थ : शिष्यों पर अनुग्रह करने में कुशल तथा जिनसे आचरण ग्रहण किया जाता है उन्हें आचार्य कहते हैं । धर्म के उपदेशक तथा जिनके पास आकर अध्ययन किया जाता उन्हें उपाध्याय कहते हैं । संघ की प्रवृत्ति करने वाले को प्रवर्तक कहते हैं । मर्यादा के उपदेशक को और जिनसे आचरण स्थिर होते हैं उन्हें स्थविर कहते हैं । गण के रक्षक और गण को धारण करने वाले को गणधर कहते हैं ।