+ विहार करते हुए पुस्तक या शिष्य को ग्रहण करने के लिए कौन योग्य हैं ? -
जंतेणंतरलद्धं सच्चित्ताचित्तमिस्सयं दव्वं
तस्स य सो आइरिओ अरिहदि एवंगुणो सोवि ॥157॥
अन्वयार्थ : मुनि को विहार करते हुए मार्ग के गाँवों में जो कुछ भी द्रव्य सचित्त-छात्र आदि, अचित्त-पुस्तक और मिश्र-पुस्तक आदि से सहित शिष्य आदि मिलते हैं उन सब द्रव्य के स्वामी आचार्य होते हैं ।