+ संघस्थ साधु और क्या करते हैं ? -
पच्चुग्गमणं किच्चा सत्तपदं अण्णमण्णपणमं च
पाहुणकरणीयकदे तिरयणसंपुच्छणं कुज्जा ॥161॥
अन्वयार्थ : वे मुनि सात कदम आगे जाकर परस्पर में प्रणाम करके आगन्तुक के प्रति रत्नत्रय की कुशलता पूछें ।