
एवं विधिणुववण्णो एवं विधिणेव सोवि संगाहिदो
सुत्तत्थं सिवखंतो एवं कुज्जा पयत्तेण ॥169॥
पडिलेहिऊण सम्मं दव्वं खेत्तं च कालभावे य
विणयउवयार जुत्तेणज्झेदव्वं पयत्तेण ॥170॥
अन्वयार्थ : उपर्युक्त विधि से वह मुनि ठीक है और उपर्युक्त विधि से ही यदि आचार्य ने ग्रहण किया है तब वह प्रयत्नपूर्वक सूत्र के अर्थ को ग्रहण कराते हुए अध्ययन करावें । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की सम्यक् प्रकार से शुद्धि करके विनय और उपचार से सहित होकर प्रयत्न-पूर्वक अध्ययन करना चाहिए ।