
दव्वादिवदिक्कमणं करेदि सुत्तत्थ सिक्खलोहेण
असमाहिमसज्झायं कलहं वाहिं वियोगं च ॥171॥
अन्वयार्थ : यदि मुनि सूत्र और उसके निमित्त से होने वाला आत्म संस्कार रूप ज्ञान, उसके लोभ से / आसक्ति से पूर्वोक्त द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की शुद्धि को उल्लंघन करके पढ़ता है तो १. असमाधि २. अस्वाध्याय ३. कलह ४. रोग ५. वियोग ।