+ जीव दया के निमित्त शुद्धि -
संथारवासयाणं पाणीलेहाहिं दंसणुज्जोवे
जत्तेणुभये काले पडिलेहा होदि कायव्वा ॥172॥
अन्वयार्थ : हाथ की रेखा दिखने योग्य प्रकाश में दोनों काल में यत्न-पूर्वक संस्तर और स्थान आदि का प्रतिलेखन करना चाहिए ।